Friday, March 6, 2009

दोस्ती व्याख्या

शायद
मुझे बचपन से ही यारबाजी में महारत हासिल कर रखी है या यूँ कहें की बिना यारबाजी के चैन नहीं मिलता (तभी तो अपनी दोस्ती से शायद कुछ दोस्तों को परेशां भी कर देता हूं ), आखिरी तमन्ना भी यही है की दोस्तों के बीच ही अंतिम सांस टूटे, अरसे से दिल्ली के चूतियापों से ऊब हो गयी थी, तरीका भी कुछ सूझ नहीं रहा था, लेकिन हर सुबह शानदार नहीं होती, देर रात घर लौटने और अमूमन लोगों के जागने के समय सोने के कारण अपनी सुबह कोई दोपहर एक बजे के करीब होती है, दुनिया भले इसे दोपहर कहती हो पर ''जब जागो तभी सवेरा'' तोः अपनी सुबह इतने ही वक़्त होती है, अभी ठीक से आँख खुल भी न पायी की दिन की शुरुआत बड़े भाई समान ''सुरंजन '' के फ़ोन से हुयी, इधर बात ख़त्म हुयी उधर रमेश और ललित का आना हुआ, जब दिमाग की दही हो जाए और इतने बड़े शहर में बोअरियत होने लगे तोः दोस्तों का मिलना किसी कीमती वस्तुके मिलने से भी कहीं ज्यादा सुखद अनुभूति का एहसास कराती है, लगा की वक़्त को समेट लिया जाए, पर न मेरे हाथ में वक़्त आने से रहा न वक़्त का गुजरना, एक बार फिर दोस्तों के करीब होने का मतलब सबसे ज्यादा पता चला और ये भी की ''दोस्त जिन्दा मुलाकात बाकी'' अगर आप भी जिंदगी से ऊब गए हों तोः दोस्तों से मिलें, अच्छा और तरोताजा महसूस करेंगे, और अचानक दोस्तों से मिलें उन्हें खोजें और उनके साथ कुछ वक़्त बिताएं ......उर्जा से लबालब होने के लिए इससे सस्ता नुस्खा किसी हकीम के पास भी शायद ही होः, वैसे कई दोस्तों को शिकायत है की उन्हें वक़्त नहीं दे पाता ''विक्की '' भी यही कहता है लेकिन मिलने के लिए मिला जाए इसलिए बहुतों से नहीं मिलता , काश की ''विक्की '' समेट बहुत से दोस्त इस मजबूरी को समझ पाते, लेकिन अब सोचा है की हर हफ्ते किसी करीबी दोस्त से जरुर मिलूँगा, लिस्ट बहुत लम्बी है और वक़्त बहुत कम है इसलिए मैं भी अभी से जुट जाता हूँ दोस्तों से मिलने की योजना बनाने में और आप भी बना लीजिये अपनी योजना.... इस बीच बहुत याद आती है कभी दिल के बेहद करीब रहे अमित सिंह ( मौजूदा समय में जी आई बी ऍम में किसी महत्वपूर्ण पद के लिए पढाई कर रहे हैं ) , अरविन्द जी जो की आज कल बंगलोर में हैं विकास जी जो की आज कल ऍम बी ऐ कर रहे हैं साथ ही अनूप शुक्ल और आकाश जी की.... इन सबने यारबाजी की मिसाल कायम की थी कभी अगर दोस्ती का इतिहास लिखा जाता तोः इन सबका नाम मैं जरुर उस किताब में लिखवाने की हर मुमकिन कोशिश करता, किसी के लिए अपना इम्तिहान छोड़ देना( शुभम सिंह ) , एक दोस्त के आयोजन को सफल बनाने के लिए तपते बुखार मेंजी जान लगाकर आयोजन को सफल बनाना , गर्मियों में बिजली गुल हो जाने पर कमरे में बंद होकर नाचना( विकाश ), बेहद गुरबत के दिनों में भी जूनियरों को छोटे भाइयों की तरह ट्रीट करना(अनूप शुक्ला ) और एक अजनबी शहर में किसी कमी का महसूस न होने देना(शौरी पाजी) आज भी ठीक वैसे याद है , कुछ खफा हो गए कुछ खो गए कुछ से मिलने का वक़्त नहीं मिलता लेकिन आज भी एक दिन तोः क्या जिंदगी उन्ही दोस्तों के नाम करने का मन करता है, हर बार बार बार ....., बाकी ''अजनबी शहर है दोस्त मिलाते रहिये, दिल मिले तभी हाथ मिलाते रहिये ''...सभी दोस्तों की बेहतरी और शानदार जिंदगी की दुआ के साथ :)
"सर्वेश पाण्डेय"
"उर्फ़ गुरुघंटाल"

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